कविता/ प्रेरक /60 खुश रहने की ठान लो
आज एक बात मान लो
खुश रहने की ठान लो
खुश रहने की ठान लो
दिल को कभी ज्ञान से आराम दो
अंदर के बच्चे को फिर सलाम दो
भागदौड़,धूप छाँव का मंजर चहुओर
किलकिल के समुंदर को विश्राम दो
खुश रहने की ठान लो
तेरा मेराइतना उतना कितना तौलोगो
जो मिला जितना मिलाअपना मानलो
क्या खोया क्या पाया है ,सब जिरह
परमवीर बनो, वीरो सा सीना तान लो
खुश रहने की ठान लो
गीत-संगीत ढोल नागाडो संग नाचलो
पूरी खीर नीर पनीर सफ़र मे बांध लो
द्रुम की छाँव में शीतलता का है घर
धरातल मे ही है ,सच्चा सुख जान लो
खुश रहने की ठान लो
दीपेश कुमार जैन
द्रुम -पेड़
आज एक बात मान लो
खुश रहने की ठान लो
खुश रहने की ठान लो
दिल को कभी ज्ञान से आराम दो
अंदर के बच्चे को फिर सलाम दो
भागदौड़,धूप छाँव का मंजर चहुओर
किलकिल के समुंदर को विश्राम दो
खुश रहने की ठान लो
तेरा मेराइतना उतना कितना तौलोगो
जो मिला जितना मिलाअपना मानलो
क्या खोया क्या पाया है ,सब जिरह
परमवीर बनो, वीरो सा सीना तान लो
खुश रहने की ठान लो
गीत-संगीत ढोल नागाडो संग नाचलो
पूरी खीर नीर पनीर सफ़र मे बांध लो
द्रुम की छाँव में शीतलता का है घर
धरातल मे ही है ,सच्चा सुख जान लो
खुश रहने की ठान लो
दीपेश कुमार जैन
द्रुम -पेड़