Saturday, November 3, 2018

कविता/ प्रेरक /60  खुश रहने की ठान लो                                           
आज एक  बात  मान लो
खुश रहने   की  ठान  लो
                  खुश रहने की ठान लो
दिल को  कभी   ज्ञान से  आराम  दो
अंदर के  बच्चे को   फिर  सलाम  दो
भागदौड़,धूप छाँव का मंजर चहुओर
किलकिल के समुंदर  को विश्राम  दो
                    खुश रहने की ठान लो
तेरा मेराइतना उतना कितना तौलोगो
जो मिला जितना मिलाअपना मानलो
क्या खोया क्या   पाया है ,सब  जिरह
परमवीर बनो, वीरो सा सीना तान लो
                    खुश रहने की ठान लो
गीत-संगीत ढोल नागाडो संग नाचलो
पूरी खीर नीर पनीर सफ़र मे बांध लो
द्रुम की छाँव में  शीतलता   का है घर
धरातल मे ही है ,सच्चा सुख जान लो
                    खुश रहने की ठान लो
                       दीपेश कुमार जैन

द्रुम -पेड़










Friday, November 2, 2018

कविता 56 चलो खुश होकर जिया जाए

कविता 56 चलो खुश होकर जिया जाए
छोटी सी जिंदगी यू ही गुज़र जाए
चलो दोस्तो खुश होकर जिया जाए
           चलो खुश होकर जिया जाए
 कहानियों के पन्ने भी धुंधले हुए
 चश्मे के नंबर  भी   उझले   हुए
 पानी के रंग झिलमिलाते रहे मगर
 जो पराये थे अब वो भी अपने हुए
            चलो खुश होकर जिया जाए
शिकवा शिकायते होती है खत्म कब
नएअंदाज़ हो तो नवनीत हो तुमअब 
किस किस को अपना मूल्य बताओगे
समय है,होगा वो ही जो होना हो जब
            चलो खुश होकर जिया जाए
क्या लाये थे सफ़र में जो होगा अपना
मिलना तो वो ही लिखा होगा जितना
ख्वाइशों का जंजाल है सफर जिंदगी
हँसते रहो हिसाब देना है हँसे कितना
            चलो खुश होकर जिया जाए

                    दीपेश कुमार जैन
                 
 
     
                                       

चित्र

कविता 34 ज़िन्दगी एक एहसास है

जिंदगी एक अहसास है ' अभिलाषाओ का पापा  कही कम कही ज्यादा प्यासों का  वो मगर क्या सोचता है समझ नहीं आता परिंदों और हवाओ को कैद करने...