Friday, November 2, 2018

कविता 56 चलो खुश होकर जिया जाए

कविता 56 चलो खुश होकर जिया जाए
छोटी सी जिंदगी यू ही गुज़र जाए
चलो दोस्तो खुश होकर जिया जाए
           चलो खुश होकर जिया जाए
 कहानियों के पन्ने भी धुंधले हुए
 चश्मे के नंबर  भी   उझले   हुए
 पानी के रंग झिलमिलाते रहे मगर
 जो पराये थे अब वो भी अपने हुए
            चलो खुश होकर जिया जाए
शिकवा शिकायते होती है खत्म कब
नएअंदाज़ हो तो नवनीत हो तुमअब 
किस किस को अपना मूल्य बताओगे
समय है,होगा वो ही जो होना हो जब
            चलो खुश होकर जिया जाए
क्या लाये थे सफ़र में जो होगा अपना
मिलना तो वो ही लिखा होगा जितना
ख्वाइशों का जंजाल है सफर जिंदगी
हँसते रहो हिसाब देना है हँसे कितना
            चलो खुश होकर जिया जाए

                    दीपेश कुमार जैन
                 
 
     
                                       

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