कलम भी आज लड़खड़ा गई
कलम भी आज लड़खड़ा गई
इस कत्ल की पहली शाम रुला गई
शहीदो की रुखसत देश को नगवार
दानवता की नई परिभाषा आ गई
कलम भी आज लड़खड़ा गई धरती माँ को मिली फिर खून से सिंचाई
आज फिर नामुरादों से मानवता शरमाई
कर्ज निभाकर धरती का फर्ज बनी मौत
आज फिर दर्द के गीत की हुई सूनी कलाई
कलम भी आज लड़खड़ा गई
दानव को दानवता की देनी होगी सीख
न छोड़ेंगे जब तक मौत की न मांगे भीख
आतंक के इन सिरफिरों दर्द का हिसाब चुकाना होगा
मरने से पहले देनी होगी इनको भी अपनी चीख
कलम भी आज लड़खड़ा गई
दीपेश कुमार जैन
कलम भी आज लड़खड़ा गई
इस कत्ल की पहली शाम रुला गई
शहीदो की रुखसत देश को नगवार
दानवता की नई परिभाषा आ गई
कलम भी आज लड़खड़ा गई धरती माँ को मिली फिर खून से सिंचाई
आज फिर नामुरादों से मानवता शरमाई
कर्ज निभाकर धरती का फर्ज बनी मौत
आज फिर दर्द के गीत की हुई सूनी कलाई
कलम भी आज लड़खड़ा गई
दानव को दानवता की देनी होगी सीख
न छोड़ेंगे जब तक मौत की न मांगे भीख
आतंक के इन सिरफिरों दर्द का हिसाब चुकाना होगा
मरने से पहले देनी होगी इनको भी अपनी चीख
कलम भी आज लड़खड़ा गई
दीपेश कुमार जैन