Friday, February 15, 2019

कलम भी आज लड़खड़ा गई
कलम भी    आज लड़खड़ा    गई
इस कत्ल की पहली शाम रुला गई
शहीदो की रुखसत देश को नगवार
दानवता की नई परिभाषा  आ गई
        कलम भी आज लड़खड़ा गई धरती माँ को मिली फिर खून से सिंचाई
आज फिर नामुरादों से मानवता शरमाई
कर्ज निभाकर धरती का फर्ज बनी मौत
आज फिर दर्द के गीत की हुई सूनी कलाई
         कलम भी आज लड़खड़ा गई
दानव को दानवता की देनी होगी सीख
न छोड़ेंगे जब तक मौत की न मांगे भीख
आतंक के इन सिरफिरों दर्द का हिसाब चुकाना होगा
मरने से पहले देनी होगी इनको भी अपनी चीख
       कलम भी आज लड़खड़ा गई
        दीपेश कुमार जैन

2 comments:

  1. Tum kavita hi karo,desh ninda kare,hum akroshit rahe,
    Kal fir kam pe jana hai,kal fir akrosh jatana,tumhe fir nayi kavita likhni hai.
    Hadsa same rahega,tumhari kavita fir wahi rahegi,shok kal bhi rahega,
    Fir taiyar ho jana,hadse fir bhi honge,tum fir naya rang dena,mai akroshit rahunga,kram jari hai,jari hi rahega.
    Ab mara to mara ab marke dekh,
    Yaki nahi ata ki ye humara kayarpan ya sahanshilta,kab tak ,kab tak,kaash tumhari ye kavita kuch bolpati dipesh,kash kuch marham lagati dipesh

    ReplyDelete
    Replies
    1. कम से कम जो जोभी कर सकता है करे

      Delete

चित्र

कविता 34 ज़िन्दगी एक एहसास है

जिंदगी एक अहसास है ' अभिलाषाओ का पापा  कही कम कही ज्यादा प्यासों का  वो मगर क्या सोचता है समझ नहीं आता परिंदों और हवाओ को कैद करने...