Friday, October 19, 2018

कविता 55 रिश्ते भी क्या चीज़ है पापा


रिश्ते भी क्या चीज़ है पापा

कहना करना ,करना कहना
सुनना सुनाना,सुनाना सुनना,
रिश्ते भी हैं   अजीब    चीज़
कभी निभना ,कभी निभाना
                  रिश्ते क्या चीज़ है पापा
हँसना हँसाना, हँसते हँसते पेट दुखाना
रोना रुलाना,रुलाकर खुद रोना
रूठना मनाना,मनाकर खुद रूठना
फिर भी घुलमिल एक हो जाना
            रिश्ते भी क्या चीज़ है पापा
जोड़ बेजोड़ बन जाता है गर
चाँद तारे भी लाता है जिगर
कहावतें बनती है तब जमी पर
मेरा चाँद मुझे आया है नज़र
            रिश्ते भी क्या चीज़ है पापा
दोस्त बनकर आना, जान बन जाना
सुख  दुख   जीवन   भर     बटबाना
कड़वे मीठे घूट जीवन पथ पर पाना
गाथा जीवन की गठरी  बन उठवाना
             रिश्ते भी क्या चीज़ है पापा
माँ  बाप  के   कंधो    पर बैठना
माँ बाप को कंधो  पर  ले  जाना
भाई बहन बनकर खिलखिलाना
बहन भाई का  जुदा  हो    जाना
             रिश्ते भी क्या चीज़ है पापा
         
                   


     
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Thursday, October 18, 2018

कविता 47 दशहरा स्पेशल

जो दस चेहरों को एक बनायेगे
                वो ही दशहरा मनाएंगे
जो कर्तव्य मार्ग पर बढ़ते जायेगे,
रात दिन तो पहिया है समय का,
जिंदगी की उलझनो को जो सुलझाएंगे
            वो ही दशहरा मनाएंगे

इर्ष्या ,देष ,घमंड से जो दूर हो जायेगे
प्रेम ,रीति,नीति ,सदाचार ही है सच्चा ज्ञान
करना है उपकार सभी पे ये ले तू ठान
जो इन बातो को समझ जायेगे
                  वो ही दशहरा मनाएंगे
जीवन है तो यू ही हँसते हँसते है जीना
नव उदय हुआ है नव चिंतन का महीना
मानवता इंसानियत के गुण जिनमे आएंगे
 जो दशरथ पुत्र राम की परम्परा निभाएंगे
                  वो ही दशहरा मनाएंगे
                  दीपेश कुमार जैन
               

Monday, October 15, 2018

कविता 46 दर्द देकर दुनिया लेती है मजे


र्द देकर दुनिया लेती है  मजे

दर्द देकर दुनिया लेती है  मजे पाखंडीयों के घर फूलो से सजे 
कभी धूप कभी छाँव के धोके यहाँ इसलिए मानवता शर्मसार बैठी लजे
     दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
खुद का नही यहाँ नजरिया कोई
 हर किसी का व्यक्तित्व कोई और रचे
कम को ज्यादा,ज्यादा को कम
हर कोई मजबूर हो झूठी कथा रचे            दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
सच झूठ का फैसला क्या कभी हो पाया
खुद की समझ ही नही ,तभी तो गैरो ने समझाया
झूठी बिसात की इबारत लंबी नही होती
कहा है बुजर्गो ने सच की कभी हार नही होती
         दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
हर कोशिशें दागदार बनाने की तुम्हे
कुछ तो होना ही है गर कोई कुछ कहे
आसमान छूने के लिए कबिलियत चाहये दीपेश
क्या फर्क पड़ता है कोई छुए ,न छुए
          दर्द देकर दुनिया लेती है, मजे
                        दीपेश कुमार जैन


Tuesday, October 9, 2018

दादा दादी की कविता

दादा दादी पहने खादी
बापू जी की याद दिलाते
मेरा देश मेरी शान
ये भी मुझे सिखलाते
अपने हाथो से दादी मुझे नहलाती इसलिये पापा की मम्मी कहलाती दादा मुझको पीठ चढ़ाते
खुद हार के मुझे जिताते
मेरे मुस्कराने से
हँसते जाते
हँसते जाते
हँसते जाते
जय हिन्द

कविता 43 जीवन के रंग बड़े निराले

    जीवन के रंग बड़े निराले
किसी को सर छुपाने को घर नहीं
और किसी के बन रहे हैं माले पे माले                  जीवन के रंग बड़े निराले
वहम पाले है दुनिया अपने अहम का भूल गया सबको मिलता है अपने कर्म का
कुछ दुनियादारी की उलझन मे उलझे कुछ रखते हिसाब इसकी उसकी किसकी सिसकी का
              जीवन के रंग बड़े निराले
झूठी सी शान का ये बाजार गया सज आये कुछ गुरुदेव भी यहाँ फहरा गए ध्वज
मंदिर मस्जिद सत्ता के भूखो की बनी तस्वीर घिनोनी
 पर थे सच्चे उनमे भी मदन - याकूब साथ गए हज
                जीवन के रंग बड़े निराले
हर रोज खुल रहे ईमान की धज्जियो के ताले
नही दिखता बाहर मंदिर के किसी को हैअन्न के लाले
सारा जग खुद में मगरूर हुआ है यहाँ हर शाम कुछ के मजे कुछ के प्याले                    जीवन के रंग बड़े निराले

Wednesday, October 3, 2018

कविता 42 हद कर दूंगा

उसने  इशारा कर दिया ,अब हद कर दूंगा
हर अंधेरी रात को अब रोशन कर दूंगा
मत देख नापाक इरादों से मेरे देश को
वार्ना तेरे घर में ही आकर तुझे दफन कर दूंगा। 
                           अब हद कर दूंगा
सत्ता का ये खेल हमारे घर का है  शौक
कई आये ऐसे जो जब मन किया हमने दिया रोक
तेरी तमीज़ का हर कतरा कतरा है हमारा
न पता तुझे कब तेरे सीने में सैलाब बन देंगे तिरंगा ठोक
                    अब हद कर दूंगा
इंसानियत  से बेतहाशा इश्क  हम भी करते
पर दरिया मे समंदर नही जाया करते
कोई कह दे उससे तलवार की नोक पर रख हाथ
जिनमे न खुद सुकून हो गैरी को नही सुलाया करते
                        अब हद कर दूँगा

Tuesday, October 2, 2018

मेरी कविता 39 वाह रे जमाना

वाह रे जमाना
खाना और कमाना
फिक्र करो खुद की या उनकी
ज़िद करो पूरी किसकी
ये है फैसला तुम्हारा 
वह रे जमाना
दिन रात की उलझने
बात की बाते ये सौगाते
कर्म रहम ईमान की दावत
बेईमानो की है मुस्कराहट
वाह रे
डोलोमाल की बातें 
बच्चों की लातो
सुनने का है मज़ा 
जो चुन चुनाव तुम्हारा
किस्सा किसी का हो 
नाता है तुम्हारा
वह रे जमाना
मेरी तुम्हरी किसी को हो
विसात के खंड नहीं है मोहताज़
जो जिसका हो गया उसी का
का है राज़
सुन् वकवास कब जागा जमाना
चलो सुन तो ली
अब ले लो साँस
वह रे जमाना। 
 दीपेश कुमार जैन

मेरी कविता 38 जज्बातों का समंदर है ये जहाँ

जज्बातों का समंदर हैं ये जहाँ
खो गए प्यार के लिए 
मिट गए देश के लिए
पटल गए जमी के लिए
उठ गए अपनों के लिए
क्या है 
जी हा जज्बातों का समंदर
तेरे में अपनापन था 
इसलिए कोई भरोसा था
किनारो का पानी बिन छुये
प्यास बूझाने का करतब
कहा से उठा
जी हा जज्बातों का समंदर....
तकलीफो का मंज़र 
हज़ारो की भीड़ का वो नज़ारा
तड़फती जिंदिगी का अश्रु
छीनकर तुझे देने वाला दिलासा की 
राख .कोन है वो 
जी हा जज्बातों का समंदर.......
खुशि या गम में आंसू क्यों
दर्द के कुछ पुर्जे बिछड़े क्यों
निगाहो के दरमिया शर्म का लिहाज़ क्यों
मोतियो के शीप सागर की हमदर्द क्यों
जी हा  जज्बातों का समंदर है ये जहाँ(समर्पित सुधी पाठको को ऑन डिमांड)दीपेश कुमार जैन

मेरी कविता 37 यह वो नही जो सोच था

यह वो नहीं जो सोचा था
तमाशा किसका बनाया 
कोई नहीं पाया समझ
किसकी है बिसात 
कौन है खिलाडी 
कौनअनाड़ी
नहीं है मूर्त का अमूर्त पर विसर्जन
फिर भी यह वो नहीं.......
कितने युगों का सफ़र
कोन टिक पाया यहाँ
किसने बनाया किसने मिटाया 
नहीं यह वह नहीं......
नज़र के कोने में कितने हैं
पैमाने
विखरी या सुलझी घटाये
धन ऋण का सब माजरा
कुछ तेरा कुछ उसका है आसरा
झूठ की तक़दीर चमकदार
भरी है गठरी प्रश्नो की हर बार
नहीं यह वह तो .....
छलकना लिखा ज़िन्दगी के पैमानों में कब तक
सोच का उल्लू ज़िंदा जब तक या
अनंत का है झमेला
चल छोड़ यार इन हासिये की बात
बस फैला गीत हवाओ में ख़ुशि के 
जान है हलक  में जब तक
नहीं यह वह नहीं....,,,
दीपेश कुमार जैन (सुधी पाठको

मेरी कविता 41हद है भ्रष्टाचार की

हद है भ्रष्ट्राचार की 
जहाँ देखो कतार लगी है इनकी
फीस क्या तुम्हे बेचने की मर्जी
आँखों में चोरो का  ईशारा
बैमानि की नियत गद्दारो की
हद................
कोई काम बाकी हो तो 
कोई बात नहीं नोटों से होता 
नेताओ से जुगत लगाओ 
दुहरे पैसो का इंतज़ाम के साथ
हद......
सब को सब मालूम है हाल
बंदियों की ज़िन्दगी के हम गुलाम
छल कपटी की है मौज़
मौन के हिलोरे के आगे आपको सलाम
हद.......
लुट गए बर्तन भाड़े सुकून गरीब का
फिर भी नही भरा आँतो का घड़ा 
                          चोर रईस का
हर दिस में सब मुँह का ताकना
ये है नज़ारा सजजनो की  कराह का
हद....
सब बहसबाजी का चलचित्र पर है खेल
भस्ट्रो को साथ उच्चको का
कड़ी है लंबी तेरी सोच के पार
सकता नहीं यहाँ कोई उध्दार
हद....
दीपेश कुमार जैन

मेरी कविता 36

: समय का लेखा जोखा है कैसा 
गम और खुशि का साया 
फेरे ज़िन्दगी के कितने 
लगाम से परे हर पल
दिन ब दिन बदलते समीकरण
कौन सच कौन झूठ
किसको है पता सच का आईना
अपने अपने सुर में उलझा
कभी इससे कभी उससे
राम की कहानी या महाभारत के पन्नें
सच को देख्ना इसान से है परे 
पर अहम् के मदारी का खेल देखो
खुद की समझ पर इतराता
जैसे संसार के रचेता का मिलना पुरस्कार
हा हा हा अहंकार का उल्लू
ज़िन्दगी की नज़र को तोलता हद नहीं
बस अपने अलाप का दीवाना
छोड़ दे इसे इंसान जानता है तू भी
एक दिन हो जायेगा श्मसान
दीपेश कुमार जैन

मेरी कविता 35 आना जाना खेल समय का

आना जाना खेल है समय का 
इस इबारत के पन्ने धुंधले हुए
चलो नए लेखन का सृजन 
जो खास थे पराये हुए
चलो नए दोस्तों की तफ्तीश् करे
आना जाना .........
कहीँ गर्जन है बिजली की
कही तांडव से भू हलचल का
सर्वनास  मानव का है अंजाम
खिलवाड़ मूर्त से अमूर्त का बना 
आना जाना............
रत्ती भर ईज़ाद करने वालो
अनंत को चुनोती का मंजर
दिल के सहमे सहमे किनारो में
बह रहा अहसास का दरिया
एक ही है बात जो कहता
न कर प्रकृति का अपमान
आना जाना.............
दीपेश कुमार जैन

Monday, October 1, 2018

कवित 40 गांधी है सबकी शान

 मेरी कविता  गाँधी क्या???????
  गांधी है सबकी शान
 उनसे है ये देश महान
 ज्ञान मार्ग पुष्ठ किया
अंहिसा की दम पर जिया
                 


                 गांधी है सबकी शान
 हर दिशा मे किया उद्धघोष
 अंग्रजो को भी आया होश
 जियो और जीने दो अपनाया
 तब भारत में भर आया जोश
                    गांधी है सबकी शान
सदबुद्धि सत्मार्ग सन्मति सिखलाया गोरो को उनका काला चेहरा दिखलाया काले कहने वालो को मुँह का काला करवाया
 बिना उठाये अस्त्र सस्त्र ही उनको दूर भगाया।
                        गांधी है सबकी शान
 शिक्षा, अध्यात्म ,दर्शन ,सत्य का खिलाड़ी
 संघर्षो का जीवन ,सरलता के खेल का जुआड़ी
 कर गया नाम अपना चिरिस्थाई
 भारत को बतला गया कहा है इसकी नाड़ी
                        गांधी है सबकी शान
 जिसने जिरह की उसको मिला शाप कर गया जाते जाते खुद के कातिल को भी माफ
 फरिस्ता था इंसान कोई नही समझा ऐसा सन्यासी कहलाया सबका बाप                           गांधी है सबकी शान
                         दीपेश कुमार जैन

चित्र

कविता 34 ज़िन्दगी एक एहसास है

जिंदगी एक अहसास है ' अभिलाषाओ का पापा  कही कम कही ज्यादा प्यासों का  वो मगर क्या सोचता है समझ नहीं आता परिंदों और हवाओ को कैद करने...