दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
दर्द देकर दुनिया लेती है मजे पाखंडीयों के घर फूलो से सजे
कभी धूप कभी छाँव के धोके यहाँ इसलिए मानवता शर्मसार बैठी लजे
दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
खुद का नही यहाँ नजरिया कोई
दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
खुद का नही यहाँ नजरिया कोई
हर किसी का व्यक्तित्व कोई और रचे
कम को ज्यादा,ज्यादा को कम
हर कोई मजबूर हो झूठी कथा रचे दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
सच झूठ का फैसला क्या कभी हो पाया
खुद की समझ ही नही ,तभी तो गैरो ने समझाया
झूठी बिसात की इबारत लंबी नही होती
कहा है बुजर्गो ने सच की कभी हार नही होती
दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
हर कोशिशें दागदार बनाने की तुम्हे
कुछ तो होना ही है गर कोई कुछ कहे
आसमान छूने के लिए कबिलियत चाहये दीपेश
क्या फर्क पड़ता है कोई छुए ,न छुए
दर्द देकर दुनिया लेती है, मजे
दीपेश कुमार जैन
कम को ज्यादा,ज्यादा को कम
हर कोई मजबूर हो झूठी कथा रचे दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
सच झूठ का फैसला क्या कभी हो पाया
खुद की समझ ही नही ,तभी तो गैरो ने समझाया
झूठी बिसात की इबारत लंबी नही होती
कहा है बुजर्गो ने सच की कभी हार नही होती
दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
हर कोशिशें दागदार बनाने की तुम्हे
कुछ तो होना ही है गर कोई कुछ कहे
आसमान छूने के लिए कबिलियत चाहये दीपेश
क्या फर्क पड़ता है कोई छुए ,न छुए
दर्द देकर दुनिया लेती है, मजे
दीपेश कुमार जैन
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