Monday, October 15, 2018

कविता 46 दर्द देकर दुनिया लेती है मजे


र्द देकर दुनिया लेती है  मजे

दर्द देकर दुनिया लेती है  मजे पाखंडीयों के घर फूलो से सजे 
कभी धूप कभी छाँव के धोके यहाँ इसलिए मानवता शर्मसार बैठी लजे
     दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
खुद का नही यहाँ नजरिया कोई
 हर किसी का व्यक्तित्व कोई और रचे
कम को ज्यादा,ज्यादा को कम
हर कोई मजबूर हो झूठी कथा रचे            दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
सच झूठ का फैसला क्या कभी हो पाया
खुद की समझ ही नही ,तभी तो गैरो ने समझाया
झूठी बिसात की इबारत लंबी नही होती
कहा है बुजर्गो ने सच की कभी हार नही होती
         दर्द देकर दुनिया लेती है मजे
हर कोशिशें दागदार बनाने की तुम्हे
कुछ तो होना ही है गर कोई कुछ कहे
आसमान छूने के लिए कबिलियत चाहये दीपेश
क्या फर्क पड़ता है कोई छुए ,न छुए
          दर्द देकर दुनिया लेती है, मजे
                        दीपेश कुमार जैन


No comments:

Post a Comment

चित्र

कविता 34 ज़िन्दगी एक एहसास है

जिंदगी एक अहसास है ' अभिलाषाओ का पापा  कही कम कही ज्यादा प्यासों का  वो मगर क्या सोचता है समझ नहीं आता परिंदों और हवाओ को कैद करने...