Tuesday, October 2, 2018

मेरी कविता 35 आना जाना खेल समय का

आना जाना खेल है समय का 
इस इबारत के पन्ने धुंधले हुए
चलो नए लेखन का सृजन 
जो खास थे पराये हुए
चलो नए दोस्तों की तफ्तीश् करे
आना जाना .........
कहीँ गर्जन है बिजली की
कही तांडव से भू हलचल का
सर्वनास  मानव का है अंजाम
खिलवाड़ मूर्त से अमूर्त का बना 
आना जाना............
रत्ती भर ईज़ाद करने वालो
अनंत को चुनोती का मंजर
दिल के सहमे सहमे किनारो में
बह रहा अहसास का दरिया
एक ही है बात जो कहता
न कर प्रकृति का अपमान
आना जाना.............
दीपेश कुमार जैन

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