Tuesday, October 2, 2018

मेरी कविता 36

: समय का लेखा जोखा है कैसा 
गम और खुशि का साया 
फेरे ज़िन्दगी के कितने 
लगाम से परे हर पल
दिन ब दिन बदलते समीकरण
कौन सच कौन झूठ
किसको है पता सच का आईना
अपने अपने सुर में उलझा
कभी इससे कभी उससे
राम की कहानी या महाभारत के पन्नें
सच को देख्ना इसान से है परे 
पर अहम् के मदारी का खेल देखो
खुद की समझ पर इतराता
जैसे संसार के रचेता का मिलना पुरस्कार
हा हा हा अहंकार का उल्लू
ज़िन्दगी की नज़र को तोलता हद नहीं
बस अपने अलाप का दीवाना
छोड़ दे इसे इंसान जानता है तू भी
एक दिन हो जायेगा श्मसान
दीपेश कुमार जैन

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