Tuesday, October 2, 2018

मेरी कविता 41हद है भ्रष्टाचार की

हद है भ्रष्ट्राचार की 
जहाँ देखो कतार लगी है इनकी
फीस क्या तुम्हे बेचने की मर्जी
आँखों में चोरो का  ईशारा
बैमानि की नियत गद्दारो की
हद................
कोई काम बाकी हो तो 
कोई बात नहीं नोटों से होता 
नेताओ से जुगत लगाओ 
दुहरे पैसो का इंतज़ाम के साथ
हद......
सब को सब मालूम है हाल
बंदियों की ज़िन्दगी के हम गुलाम
छल कपटी की है मौज़
मौन के हिलोरे के आगे आपको सलाम
हद.......
लुट गए बर्तन भाड़े सुकून गरीब का
फिर भी नही भरा आँतो का घड़ा 
                          चोर रईस का
हर दिस में सब मुँह का ताकना
ये है नज़ारा सजजनो की  कराह का
हद....
सब बहसबाजी का चलचित्र पर है खेल
भस्ट्रो को साथ उच्चको का
कड़ी है लंबी तेरी सोच के पार
सकता नहीं यहाँ कोई उध्दार
हद....
दीपेश कुमार जैन

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