Tuesday, October 2, 2018

मेरी कविता 38 जज्बातों का समंदर है ये जहाँ

जज्बातों का समंदर हैं ये जहाँ
खो गए प्यार के लिए 
मिट गए देश के लिए
पटल गए जमी के लिए
उठ गए अपनों के लिए
क्या है 
जी हा जज्बातों का समंदर
तेरे में अपनापन था 
इसलिए कोई भरोसा था
किनारो का पानी बिन छुये
प्यास बूझाने का करतब
कहा से उठा
जी हा जज्बातों का समंदर....
तकलीफो का मंज़र 
हज़ारो की भीड़ का वो नज़ारा
तड़फती जिंदिगी का अश्रु
छीनकर तुझे देने वाला दिलासा की 
राख .कोन है वो 
जी हा जज्बातों का समंदर.......
खुशि या गम में आंसू क्यों
दर्द के कुछ पुर्जे बिछड़े क्यों
निगाहो के दरमिया शर्म का लिहाज़ क्यों
मोतियो के शीप सागर की हमदर्द क्यों
जी हा  जज्बातों का समंदर है ये जहाँ(समर्पित सुधी पाठको को ऑन डिमांड)दीपेश कुमार जैन

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