Tuesday, October 9, 2018

कविता 43 जीवन के रंग बड़े निराले

    जीवन के रंग बड़े निराले
किसी को सर छुपाने को घर नहीं
और किसी के बन रहे हैं माले पे माले                  जीवन के रंग बड़े निराले
वहम पाले है दुनिया अपने अहम का भूल गया सबको मिलता है अपने कर्म का
कुछ दुनियादारी की उलझन मे उलझे कुछ रखते हिसाब इसकी उसकी किसकी सिसकी का
              जीवन के रंग बड़े निराले
झूठी सी शान का ये बाजार गया सज आये कुछ गुरुदेव भी यहाँ फहरा गए ध्वज
मंदिर मस्जिद सत्ता के भूखो की बनी तस्वीर घिनोनी
 पर थे सच्चे उनमे भी मदन - याकूब साथ गए हज
                जीवन के रंग बड़े निराले
हर रोज खुल रहे ईमान की धज्जियो के ताले
नही दिखता बाहर मंदिर के किसी को हैअन्न के लाले
सारा जग खुद में मगरूर हुआ है यहाँ हर शाम कुछ के मजे कुछ के प्याले                    जीवन के रंग बड़े निराले

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