Saturday, September 15, 2018

कविता 18 समय का लेखा जोखा

समय का लेखा जोखा है कैसा
गम और खुशि का साया
फेरे ज़िन्दगी के कितने
लगाम से परे हर पल
दिन ब दिन बदलते समीकरण
कौन सच कौन झूठ
किसको है पता सच का आईना
अपने अपने सुर में उलझा
कभी इससे कभी उससे
राम की कहानी या महाभारत के पन्नें
सच को देख्ना इसान से है परे
पर अहम् के मदारी का खेल देखो
खुद की समझ पर इतराता
जैसे संसार के रचेता का मिलना पुरस्कार
हा हा हा अहंकार का उल्लू
ज़िन्दगी की नज़र को तोलता ह8 नहीं
बस अपने अलाप का दीवाना
छोड़ दे इसे इंसान जानता है तू भी
एक दिन हो जायेगा समसान्
दीपेश कुमार जैन

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