Friday, September 14, 2018

मेरी कविता2 अजनबियों सी है जिंदगी

अजनबियों सी है जिंदगी
अपना पराया स्वयं का हिसाब किताब नही
फिर भी कहते सब यहाँ ये भी सही वो भी सही
आंधियो तुफानो का दौर इस कदर चल पड़ा
 रुक जाए साँसे संसार की न जाने
 कब कहाँ
 अजनबियों सी है जिंदगी
 अजब से फलसफा दौरे कायनात है चहु और अहम की फैली बिसात है मूल्यो की बलिबेदी हर रोज चढ़ती है
 न जाने कैसी है कहाँ से है ये सौगात अजनबियों सी है जिंदगी
उलझनों का है किस्सा आज आम गठरी है
मुश्किलो की फैली
हर धाम
 कौन होगा वो कहा होगा वो जिसकी पूजा के लिए लोगो ने दिए कोरे दाम अजनबियों सी है जिंदगी
 दस्ताने हुजूम मुल्क की किफायत चहु ओर देखी है हमने सिर्फ नसीहत नसीब का खेल नियामत है
 जगजाहिर बेपरवाहो की हाले ए खास है तबियत
 अजनबियों सी है जिंदगी दीपेश कुमार जैन

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