Saturday, September 15, 2018

कविता 18

एक पहेली है ज़िन्दगी
सोचने के लिए
क्या नहीं यहाँ
उलझनों की फैली है हॉट
तू कर सके तो बन मत मूक
दिखा अपने जलवो की राख़
एक पहेली है ज़िन्दगी
मेरे हाथो में अनगिनत
ख़्वाब अधूरे है तेरी ही तरह
सिर्फ सांसो के मूल्यों की
कर रहा हु कर्द्र तेरी ही तरह
एक.....
समय के चक्रविहु की है कहानी
वरना है क्या यहाँ सिर्फ और सिर्फ हैरानी
कुछ समझ गए जो न समझे
धूमिल कर गए
लाशो का काफिला यु ही गुजरता गया
हैरान दीपेश निग़ाहों को मिलाता गया तुम्हरी तरह
एक पहेली.....
संछिप्त सा दुनिया का परिचय
काफिलों का हुजूम इसे बढ़ाता चला गया
क्या मेरा क्या तेरा दर ब् दर
चूर हो गया चेहरा तेरा..मेरा
फिक्र है मुझे नादाँ तेरी
समझाया तुझे पर राह भटकने का तेरा सिलसिला .....पहेलियो की बस बढ़ता ही गया
दीपेश कुमार जैन (समर्पित मेरे पाठको को संकेततिक अर्थ समझे)

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