जज्बातों का समंदर हैं ये जहाँ
खो गए प्यार के लिए
मिट गए देश के लिए
पटल गए जमी के लिए
उठ गए अपनों के लिए
क्या है
जी हा जज्बातों का समंदर
तेरे में अपनापन था
इसलिए कोई भरोसा था
किनारो का पानी बिन छुये
प्यास बूझाने का करतब
कहा से उठा
जी हा जज्बातों का समंदर....
तकलीफो का मंज़र
हज़ारो की भीड़ का वो नज़ारा
तड़फती जिंदिगी का अश्रु
छीनकर तुझे देने वाला दिलासा की
राख .कोन है वो
जी हा जज्बातों का समंदर.......
खुशि या गम में आंसू क्यों
दर्द के कुछ पुर्जे बिछड़े क्यों
निगाहो के दरमिया शर्म का लिहाज़ क्यों
मोतियो के शीप सागर की हमदर्द क्यों
जी हा जज्बातों का समंदर है ये जहाँ(समर्पित सुधी पाठको को ऑन डिमांड)दीपेश कुमार जैन
स्वरचित कविताओं/विचारो/लेखों/ज्ञानवर्धक संग्रह/कहानियां **न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।* *कामये दुःखतप्तानां प्रणिनां आर्तिनाशनम् ॥*
Saturday, September 15, 2018
कविता 22
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