एक पहेली है ज़िन्दगी
सोचने के लिए
क्या नहीं यहाँ
उलझनों की फैली है हॉट
तू कर सके तो बन मत मूक
दिखा अपने जलवो की राख़
एक पहेली है ज़िन्दगी
मेरे हाथो में अनगिनत
ख़्वाब अधूरे है तेरी ही तरह
सिर्फ सांसो के मूल्यों की
कर रहा हु कर्द्र तेरी ही तरह
एक.....
समय के चक्रविहु की है कहानी
वरना है क्या यहाँ सिर्फ और सिर्फ हैरानी
कुछ समझ गए जो न समझे
धूमिल कर गए
लाशो का काफिला यु ही गुजरता गया
हैरान दीपेश निग़ाहों को मिलाता गया तुम्हरी तरह
एक पहेली.....
संछिप्त सा दुनिया का परिचय
काफिलों का हुजूम इसे बढ़ाता चला गया
क्या मेरा क्या तेरा दर ब् दर
चूर हो गया चेहरा तेरा..मेरा
फिक्र है मुझे नादाँ तेरी
समझाया तुझे पर राह भटकने का तेरा सिलसिला .....पहेलियो की बस बढ़ता ही गया
दीपेश कुमार जैन (समर्पित मेरे पाठको को संकेततिक अर्थ समझे)
स्वरचित कविताओं/विचारो/लेखों/ज्ञानवर्धक संग्रह/कहानियां **न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।* *कामये दुःखतप्तानां प्रणिनां आर्तिनाशनम् ॥*
Saturday, September 15, 2018
कविता 24
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