वाह रे जमाना
खाना और कमाना
फिक्र करो खुद की या उनकी
ज़िद करो पूरी किसकी
ये है फैसला तुम्हारा
वह रे जमाना
दिन रात की उलझने
बात की बाते ये सौगाते
कर्म रहम ईमान की दावत
बेईमानो की है मुस्कराहट
वाह रे
डोलोमाल की बातें
बच्चों की लातो
सुनने का है मज़ा
जो चुन चुनाव तुम्हारा
किस्सा किसी का हो
नाता है तुम्हारा
वह रे जमाना
मेरी तुम्हरी किसी को हो
विसात के खंड नहीं है मोहताज़
जो जिसका हो गया उसी का
का है राज़
सुन् वकवास कब जागा जमाना
चलो सुन तो ली
अब ले लो साँस
वह रे जमाना। दीपेश कुमार जैन
स्वरचित कविताओं/विचारो/लेखों/ज्ञानवर्धक संग्रह/कहानियां **न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।* *कामये दुःखतप्तानां प्रणिनां आर्तिनाशनम् ॥*
Saturday, September 15, 2018
कविता 25 वाह रे जनता
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