मुमकिन नहीं सब हमारा हो
जाये
चलो दोस्तों जो मिला है आज उसका ही जशन हो जाये
मुश्किलो से कट रहे रास्ते सभी के छोड़ो यार खोने पाने का आज किस्सा तमाम हो जाये
दीवारों पर लटकी ये तस्वीरे क्या बयां कर रही
सुनकर आहटे हवा की छुअन मदहोश कर रही
दीदारे यार का ख्याव है चहु ओर चलो धागों को देते है जोड़
सपनो का कारवाँ खल्लास हो जाये;
मुमकिन नहीं सब हमारा हो जाये 'दीपेश' चलो दोस्तों जो मिला है आज उसका ही जशन हो जाये क्या सौगातें मेरी तेरी होगी
इस जहाँ में जो मिला नहीं कोई गिला नहीं परिंदो की महफ़िल है ज़िन्दगी का फलसफा चलो यार उलझनों के सागर से परे गगनमय हो जाये
दीपेश कुमार जैन
सुधी पाठको को समर्पित
स्वरचित कविताओं/विचारो/लेखों/ज्ञानवर्धक संग्रह/कहानियां **न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।* *कामये दुःखतप्तानां प्रणिनां आर्तिनाशनम् ॥*
Friday, September 14, 2018
मेरी कविता 4 मुमकिन नही सब हमारा हो जाये
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