Friday, September 14, 2018

मेरी कविता 4 मुमकिन नही सब हमारा हो जाये


मुमकिन नहीं सब हमारा हो
जाये
चलो दोस्तों जो मिला है आज उसका ही जशन हो जाये
मुश्किलो से कट रहे रास्ते सभी के छोड़ो यार खोने पाने का आज किस्सा तमाम हो जाये
दीवारों पर लटकी ये तस्वीरे क्या बयां कर रही
सुनकर आहटे हवा की छुअन मदहोश कर रही
दीदारे यार का ख्याव है चहु ओर चलो धागों को देते है जोड़
सपनो का कारवाँ खल्लास हो जाये;
मुमकिन नहीं सब हमारा हो जाये 'दीपेश' चलो दोस्तों जो मिला है आज उसका ही जशन हो जाये क्या सौगातें मेरी तेरी होगी
इस जहाँ में जो मिला नहीं कोई गिला नहीं परिंदो की महफ़िल है ज़िन्दगी का फलसफा चलो यार उलझनों के सागर से परे गगनमय हो जाये
दीपेश कुमार जैन
सुधी पाठको को समर्पित

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