Monday, September 17, 2018

विवध

[17/09, 11:51 pm] दीपेश कुमार जैन: खुद की राह खुद बना
जिंदगी की उलझन के हासिये में कितने खो गए
जो है बाक़ी यहाँ खुदगर्ज़ हो गए
खुद के लिए फूल दूजे के शूल हो गए
खुद की राह खुद बना
कोई चाह ऐसी न रही फकत
जो थे मेरे साथ तेरे हो गए
संबधो की डोरी किसी टूटे कब
टूटी है । वो फिर गुनहगार से मेरे हो गए
खुद की रह खुद बना
आया है माझी पतवार के लिए
धाराओ के विपरीत साँसों के
तार हो गए
अब तू ही लगा पार अनंत
रिश्तो के काफिले उजाड़ हो गए
खुद बना ........
दीपेश कुमार
[17/09, 11:51 pm] दीपेश कुमार जैन: समय का लेखा जोखा है कैसा
गम और खुशि का साया
फेरे ज़िन्दगी के कितने
लगाम से परे हर पल
दिन ब दिन बदलते समीकरण
कौन सच कौन झूठ
किसको है पता सच का आईना
अपने अपने सुर में उलझा
कभी इससे कभी उससे
राम की कहानी या महाभारत के पन्नें
सच को देख्ना इसान से है परे
पर अहम् के मदारी का खेल देखो
खुद की समझ पर इतराता
जैसे संसार के रचेता का मिलना पुरस्कार
हा हा हा अहंकार का उल्लू
ज़िन्दगी की नज़र को तोलता ह8 नहीं
बस अपने अलाप का दीवाना
छोड़ दे इसे इंसान जानता है तू भी
एक दिन हो जायेगा समसान्
दीपेश कुमार जैन
[17/09, 11:51 pm] दीपेश कुमार जैन: ये खेल कब तक देखू माँ
शोक दर्द की इन्तहा है ये शमा
रही कसर अब क्या वीरता दिखाने की
शीश भी काट लिए ज़ालिमो के भालो ने
                   ये खेल कब तक देखू माँ
ज़ख्म एक भरता नहीं
खुद  पे काबू है मगर
शहर की ज़िंदगी ये मौज़
सरहद की सोचता है कौन
                        ये खेल कब तक देखू माँ
बदसलूकी का लिबास ओढ़े कोई
हरकतों का नंगा नाच दिखाता है
क्या करे अमन का पैगाम देने का वक्त है
क्या नया हुआ होगी जान किसी सिपाही की
                      ये खेल कब तक देखू माँ
वक्त का तराजू भी डामाडोल हो गया
दिल फिर पसीज के खुदगर्ज़ हो गया
शक खुद की वीरता का औऱ गहरा
शोर्य का खेल माँ के आँसू का कतरा हो गया
                          ये खेल कब तक देखू माँ
                                       दीपेश कुमार जैन
                                           3/5/2017
                                   (सुधी पाठको के लिए)
[17/09, 11:51 pm] दीपेश कुमार जैन: हद है भ्रष्ट्राचार की
जहाँ देखो कतार लगी है इनकी
फीस क्या तुम्हे बेचने की मर्जी
आँखों में चोरो का  ईशारा
बैमानि की नियत गद्दारो की
हद................
कोई काम बाकी हो तो
कोई बात नहीं नोटों से होता
नेताओ से जुगत लगाओ
दुहरे पैसो का इंतज़ाम के साथ
हद......
सब को सब मालूम है हाल
बंदियों की ज़िन्दगी के हम गुलाम
छल कपटी की है मौज़
मौन के हिलोरे के आगे आपको सलाम
हद.......
लुट गए बर्तन भाड़े सुकून गरीब का
फिर भी नही भरा आँतो का घड़ा
                          चोर रईस का
हर दिस में सब मुँह का ताकना
ये है नज़ारा सजजनो की  कराह का
हद....
सब बहसबाजी का चलचित्र पर है खेल
भस्ट्रो को साथ उच्चको का
कड़ी है लंबी तेरी सोच के पार
सकता नहीं यहाँ कोई उध्दार
हद....
दीपेश कुमार जैन   एक सच
[17/09, 11:51 pm] दीपेश कुमार जैन: यह वो नहीं जो सोचा था
तमाशा किसका बनाया
कोई नहीं पाया समझ
किसकी है बिसात
कौन है खिलाडी
कौनअनाड़ी
नहीं है मूर्त का अमूर्त पर विसर्जन
फिर भी यह वो नहीं.......
कितने युगों का सफ़र
कोन टिक पाया यहाँ
किसने बनाया किसने मिटाया
नहीं यह वह नहीं......
नज़र के कोने में कितने हैं
पैमाने
विखरी या सुलझी घटाये
धन ऋण का सब माजरा
कुछ तेरा कुछ उसका है आसरा
झूठ की तक़दीर चमकदार
भरी है गठरी प्रश्नो की हर बार
नहीं यह वह तो .....
छलकना लिखा ज़िन्दगी के पैमानों में कब तक
सोच का उल्लू ज़िंदा जब तक या
अनंत का है झमेला
चल छोड़ यार इन हासिये की बात
बस फैला गीत हवाओ में ख़ुशि के
जान है हलक  में जब तक
नहीं यह वह नहीं....,,,
दीपेश कुमार जैन (सुधी पाठको के लिए)
[17/09, 11:51 pm] दीपेश कुमार जैन: एक पहेली है ज़िन्दगी
सोचने के लिए
क्या नहीं यहाँ
उलझनों की फैली है हॉट
तू कर सके तो बन मत मूक
दिखा अपने जलवो की राख़
एक पहेली है ज़िन्दगी
मेरे हाथो में अनगिनत
ख़्वाब अधूरे है तेरी ही तरह
सिर्फ सांसो के मूल्यों की
कर रहा हु कर्द्र तेरी ही तरह
एक.....
समय के चक्रविहु की है कहानी
वरना है क्या यहाँ सिर्फ और सिर्फ हैरानी
कुछ समझ गए जो न समझे
धूमिल कर गए
लाशो का काफिला यु ही गुजरता गया
हैरान दीपेश निग़ाहों को मिलाता गया तुम्हरी तरह
एक पहेली.....
संछिप्त सा दुनिया का परिचय
काफिलों का हुजूम इसे बढ़ाता चला गया
क्या मेरा क्या तेरा दर ब् दर
चूर हो गया चेहरा तेरा..मेरा
फिक्र है मुझे नादाँ तेरी
समझाया तुझे पर राह भटकने का तेरा सिलसिला .....पहेलियो की बस बढ़ता ही गया
दीपेश कुमार जैन (समर्पित मेरे पाठको को संकेततिक अर्थ समझे)
[17/09, 11:51 pm] दीपेश कुमार जैन: जज्बातों का समंदर हैं ये जहाँ
खो गए प्यार के लिए
मिट गए देश के लिए
पटल गए जमी के लिए
उठ गए अपनों के लिए
क्या है
जी हा जज्बातों का समंदर
तेरे में अपनापन था
इसलिए कोई भरोसा था
किनारो का पानी बिन छुये
प्यास बूझाने का करतब
कहा से उठा
जी हा जज्बातों का समंदर....
तकलीफो का मंज़र
हज़ारो की भीड़ का वो नज़ारा
तड़फती जिंदिगी का अश्रु
छीनकर तुझे देने वाला दिलासा की
राख .कोन है वो
जी हा जज्बातों का समंदर.......
खुशि या गम में आंसू क्यों
दर्द के कुछ पुर्जे बिछड़े क्यों
निगाहो के दरमिया शर्म का लिहाज़ क्यों
मोतियो के शीप सागर की हमदर्द क्यों
जी हा  जज्बातों का समंदर है ये जहाँ(समर्पित सुधी पाठको को ऑन डिमांड)दीपेश कुमार जैन
[17/09, 11:51 pm] दीपेश कुमार जैन: वाह रे जमाना
खाना और कमाना
फिक्र करो खुद की या उनकी
ज़िद करो पूरी किसकी
ये है फैसला तुम्हारा
वह रे जमाना
दिन रात की उलझने
बात की बाते ये सौगाते
कर्म रहम ईमान की दावत
बेईमानो की है मुस्कराहट
वाह रे
डोलोमाल की बातें
बच्चों की लातो
सुनने का है मज़ा
जो चुन चुनाव तुम्हारा
किस्सा किसी का हो
नाता है तुम्हारा
वह रे जमाना
मेरी तुम्हरी किसी को हो
विसात के खंड नहीं है मोहताज़
जो जिसका हो गया उसी का
का है राज़
सुन् वकवास कब जागा जमाना
चलो सुन तो ली
अब ले लो साँस
वह रे जमाना।  दीपेश कुमार जैन
[17/09, 11:51 pm] दीपेश कुमार जैन: आना जाना खेल है समय का
इस इबारत के पन्ने धुंधले हुए
चलो नए लेखन का सृजन
जो खास थे पराये हुए
चलो नए दोस्तों की तफ्तीश् करे
आना जाना .........
कहीँ गर्जन है बिजली की
कही तांडव से भू हलचल का
सर्वनास  मानव का है अंजाम
खिलवाड़ मूर्त से अमूर्त का बना
आना जाना............
रत्ती भर ईज़ाद करने वालो
अनंत को चुनोती का मंजर
दिल के सहमे सहमे किनारो में
बह रहा अहसास का दरिया
एक ही है बात जो कहता
न कर प्रकृति का अपमान
आना जाना.............
दीपेश कुमार जैन
[17/09, 11:51 pm] दीपेश कुमार जैन: अब रहने भी दो पापा
कम के दाम मिलते है यहाँ
अब ईमान क्या करे
शाम की तन्हाई में
थोडा जी लेने दो
एक दो कस मर के पी लेने दो
अब रहने भी पाप
नालायको की दुनिया में
आपका ये फिर नया पाठ
वफ़ा का नाम ही बेमानी हो गया
अब रहने भी दो पापा
जानता हु न आप हारेंगे न
वो सिद्धान्त जिनकी बिसात
पर जिया आपने जीवन को
अब रहने भी दो पाप
संस्कृति के मूल्यों का हिसाब
बिगड़ गया है अब
संस्कार कमजोरी हो गया है अब
किस विस्वास की बात होती है यहाँ
आबरू लूट ली अब यहाँ
बेटी की बाप ने
अब रहने भी पापा
बैमानो की दुनिया में ईमान के इनाम
खो गए है सब्दकोश से ऐसे नाम
अब रहने भी दो पापा
दीपेश कुमार जैन

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