मत पूछो फलसफा ज़िन्दगी का
यूँ गुज़री है कभी धूप तो कभी छाँव
नावो में भरा रहा पानी फिर भी चलती रही
तलाश ज़िन्दगी की ता उम्र फलती रही
मंज़िल में कई काफिले मिले
कुछ खुदगर्ज तो कुछ बेमर्ज़
जिस शख्स से उम्मीद थी वह छलता रहा
पर जूनून हवाओ के रास्ते बढ़ता रहा
फकत कुछ यादें दिल से न जाती
रही कुछ बाते इन वादियों में सदा महकती
धन ऋण का पूरा था खेला
चलो छोडो, उठ ही जाना है सबका एक दिन मेला( fair)
दीपेश कुमार जैन
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