मजहब का कैसा नाच है चलता
कोई नही सिर्फ मासूमो को छलता
सफाईया देते है लोग ऐसे रंगीन पटल पे
गलती किसकी है पता ही नही चलता
दीपेश जैन
स्वरचित कविताओं/विचारो/लेखों/ज्ञानवर्धक संग्रह/कहानियां **न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।* *कामये दुःखतप्तानां प्रणिनां आर्तिनाशनम् ॥*
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कविता 34 ज़िन्दगी एक एहसास है
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