Saturday, September 15, 2018

कविता14

दो गज जमीन का संग
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फटिक तरंगे जीवन प्रकाश
अमंद  गति जीवन की
अविरल धारा ज्ञान की
दो गज  जमीन का संग
               दो गज....
अथाह है पाया नियति से
मन के गीत की झंकार
असमय का निस्पंदन
धातुओ की आवाज़
                 दो गज़.....
रिश्ता है  डोरी का
पवन के झूलो से
राह के कांन्टे
जिजीविषा नित नित बढ़ती अपितु
                   दो गज.......
दीपेश कुमार जैन(सुधी पाठको को समर्पित)

फटिक=स्फटिक पत्थर
अमंद=तीव्र
जिजीविषा =जीने की तामन्ना

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