Saturday, September 15, 2018

कविता 29 अब रहने भी दो पापा

अब रहने भी दो पापा
कम के दाम मिलते है यहाँ
अब ईमान क्या करे
शाम की तन्हाई में
थोडा जी लेने दो
एक दो कस मर के पी लेने दो
अब रहने भी पाप
नालायको की दुनिया में
आपका ये फिर नया पाठ
वफ़ा का नाम ही बेमानी हो गया
अब रहने भी दो पापा
जानता हु न आप हारेंगे न
वो सिद्धान्त जिनकी बिसात
पर जिया आपने जीवन को
अब रहने भी दो पाप
संस्कृति के मूल्यों का हिसाब
बिगड़ गया है अब
संस्कार कमजोरी हो गया है अब
किस विस्वास की बात होती है यहाँ
आबरू लूट ली अब यहाँ
बेटी की बाप ने
अब रहने भी पापा
बैमानो की दुनिया में ईमान के इनाम
खो गए है सब्दकोश से ऐसे नाम
अब रहने भी दो पापा
दीपेश कुमार जैन

No comments:

Post a Comment

चित्र

कविता 34 ज़िन्दगी एक एहसास है

जिंदगी एक अहसास है ' अभिलाषाओ का पापा  कही कम कही ज्यादा प्यासों का  वो मगर क्या सोचता है समझ नहीं आता परिंदों और हवाओ को कैद करने...