अब रहने भी दो पापा
कम के दाम मिलते है यहाँ
अब ईमान क्या करे
शाम की तन्हाई में
थोडा जी लेने दो
एक दो कस मर के पी लेने दो
अब रहने भी पाप
नालायको की दुनिया में
आपका ये फिर नया पाठ
वफ़ा का नाम ही बेमानी हो गया
अब रहने भी दो पापा
जानता हु न आप हारेंगे न
वो सिद्धान्त जिनकी बिसात
पर जिया आपने जीवन को
अब रहने भी दो पाप
संस्कृति के मूल्यों का हिसाब
बिगड़ गया है अब
संस्कार कमजोरी हो गया है अब
किस विस्वास की बात होती है यहाँ
आबरू लूट ली अब यहाँ
बेटी की बाप ने
अब रहने भी पापा
बैमानो की दुनिया में ईमान के इनाम
खो गए है सब्दकोश से ऐसे नाम
अब रहने भी दो पापा
दीपेश कुमार जैन
स्वरचित कविताओं/विचारो/लेखों/ज्ञानवर्धक संग्रह/कहानियां **न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।* *कामये दुःखतप्तानां प्रणिनां आर्तिनाशनम् ॥*
Saturday, September 15, 2018
कविता 29 अब रहने भी दो पापा
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