अपनों से है सपने
गैरो से क्या
किन्तु कौन है अपना कौन पराया
उलझा है तू जीवन भर यहाँ
मूल्यों की कौड़िया है रिश्ते
कब बने जाने कबे टूट गए
अपनों से है सपने
किसको लाया था साथ अपने
किसको अपना सा पाया था
जाल है रिश्तो का
न जाने किसने बिछाया था
रूठ गए मोती न जाने माला के
सब बिखरा बिखरा है पाया
अपनों से है सपने
पहेलियो के जाल जीवन में
हर दिन बढते है जाते
दोस्तों की तलाश कम
इंसानियत की है तलाश
पर कहा जहा देखता हु आज
सिर्फ नजर आती है इसकी लाश
आपनो से है सपने
आधुनिकता मे अब कहा रहे अपने
लेनदेन के है सिर्फ अपने
किन अपनों की तलाश में है दीप
किन सपनो की है आरजू
अपनों से है सपने
दीपेश कुमार जैन
गैरो से क्या
किन्तु कौन है अपना कौन पराया
उलझा है तू जीवन भर यहाँ
मूल्यों की कौड़िया है रिश्ते
कब बने जाने कबे टूट गए
अपनों से है सपने
किसको लाया था साथ अपने
किसको अपना सा पाया था
जाल है रिश्तो का
न जाने किसने बिछाया था
रूठ गए मोती न जाने माला के
सब बिखरा बिखरा है पाया
अपनों से है सपने
पहेलियो के जाल जीवन में
हर दिन बढते है जाते
दोस्तों की तलाश कम
इंसानियत की है तलाश
पर कहा जहा देखता हु आज
सिर्फ नजर आती है इसकी लाश
आपनो से है सपने
आधुनिकता मे अब कहा रहे अपने
लेनदेन के है सिर्फ अपने
किन अपनों की तलाश में है दीप
किन सपनो की है आरजू
अपनों से है सपने
दीपेश कुमार जैन
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