वाह रे इंसान
हवाओ को गुमान क्यों नहीं होता
जिसके दम से सांसो का संसार जीता
नीर का गुमान कहा है ;
:कहा है मिटटी का गुमान
जिसकी जड़ में जीवन पलता
बस है उस इंसान मैं जो जानता है
मिटटी का पुतला है खुद
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वाह रे इंसान ..............................
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